Wednesday, March 21, 2012

शारीरिक सौदर्य

पार्थिव सौन्दर्य जिसे हम शारीरिक सौदर्य भी कहते हैं वास्तव में नीच गति की और ले जाता है ,जिसके कारण हम सौन्दर्य और अपना दोनों को ही नष्ट कर लेते हैं .उद्धरण के लिए एक सुरभित  सुन्दर पुष्प हमें अपनी और आकृष्ट करता है ,तुरंत ही हमारे मन में उसे प्राप्त करने की अभिलाषा उत्पन्न होती है,हम निष्ठुरता से उसे डाल से तोड़ कर अपने नेत्रों और नासिका को क्षणिक आनंद प्रदान करतें हैं .थोड़ी देर के बाद वह पुष्प अपना सौंदर्य और सुरभि खो देता है ,तब हम उसको धुल में फेंक कर, पेरों से रोंदते हुए चल पडतें हैं .
 " भौतिक सौन्दर्य की यही परिणिति है "

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