Sunday, March 18, 2012

' नश्तर '

<<<<<<<< ' नश्तर ' <<<<<<<<<
"मदमस्त सपनो के ये कण आँखों में चुभते क्यों हैं 
बनकर नश्तर ये प्रेमाश्रु तडफाते क्यों हैं
किया क्यों रक्तरंजित इन नयनों की निर्मलता को !
जहां ना था रण,न विरोध ,न कोई ,दुराव 
था तो बस अपनत्व ,प्यार ,और चाहत कि देखूं तुमको " !!
(सत्य ....शर्मा ) 

No comments:

Post a Comment