Tuesday, December 3, 2013

मोटापा

                                                           स्थूलता Obesity 
                        ओबेसिटी, स्थूलता, मेदोवृद्धि आदि नामों से जाने  जाने वाला मोटापा आधुनिक युग कि एक आम  बीमारी का स्वरुप ले चुकी है , जितनी तेजी से आधुनिकीकरण , शहरीकरण और पाश्चात्य जीवनशैली का प्रचार प्रसार हो रहा है ,उससे भी तीव्र गति से शहरी एवं समृद्ध वर्ग में मोटापे का विस्तार हो रहा है। प्रत्येक आयु वर्ग के व्यक्ति इससे पीड़ित दिखाई पड़ते हैं।
               स्थूलता के मुख्य दो प्रकार हैं :- १ - आभ्यन्तर और  २ -बाह्य। आभ्यन्तर स्थूलता अंतः स्रावी ग्रंथियों कि विकृति के कारण ही उत्पन्न होती है आधुनिक चिकत्सा अनुसार हाइपोथैरोडिज्म ,हाइपोगोनाडिज्म ,हाइपो पिट्यूटरीजम  ,कुशिंग सिन्ड्रोम और एंडोक्राइन डिसऑर्डर्स कहे गए हैं।
                    दूसरे प्रकार कि स्थूलता आगन्तुज अर्थात बाहरी  कारणो से उत्पन्न होती है अधिक गरिष्ठ मधुर पदार्थों का सेवन ,विलासिता पूर्ण जीवन, शारीरिक श्रम का आभाव और शीतल पेयों , डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों एवं फ़ास्ट फ़ूड के बढ़ती रूचि और इन  खाद्य पदार्थों का विज्ञापन ,व्यापारिक प्रस्तुति अधिक आहार को बढ़ावा देता है जिसके परिणाम स्वरुप स्थूलता को बढ़ावा मिलता है।  इनके अतिरिक्त आधुनिक चिकत्सा में प्रयुक्त औषधियों  के दुष्परिणाम स्वरुप भी स्थूलता उत्पन्न होती है यथा -स्टेरॉयड ,ओरल कॉन्ट्रसेप्टिव ,फेनोथिअजिंस और इन्सुलिन भूख को बढ़ाकर स्थूलता को उत्पन्न करती हैं।
                     स्थूलता से होने वाले उपद्रव :-अति स्थूल व्यक्ति मधुमेह ,धमनीकाठिन्य ,पित्त कि थैली कि पथरी वातरक्त हृदय रोग.मैथुन अक्षमता बंध्यता आदि अनेक रोग स्थूलता के उपद्रव के रूप में प्राप्त कर लेते हैं। मानसिक व्याधियां भी युवा वर्ग के स्थूल रोगी को ग्रसित कर लेती हैं।
                                                               
 
                                                       चिकत्सा सूत्र 
                     सर्वप्रथम रोगी को स्थूलता के उत्पन्न होने के कारणों का परित्याग करना आवश्यक है। आलस्य छोड़कर एक व्यवस्थित दिनचर्या आहार विहार का पालन करना होगा।
१ - प्रातः काल स्वच्छ एवं खुले वातावरण में सामर्थ्य के अनुसार ३ - ४ किलोमीटर का भ्रमण।
२ - इसके पश्चात् आयु के अनुसार स्थूल अंगों पर प्रभाव डालने वाले व्यायाम सामर्थ्य अनुसार करें।
३ -भोजन में मीठा और मीठे पदार्थों का पूर्ण रूप से त्याग , घी ,क्रीम ,मक्खन तले हुऐ पदार्थ , शीतल पेय , आइसक्रीम शरबत ड्राई फ्रूट्स। आम केला मछली अंडा शराब चावल उड़द राजमा आदि भोजन नहीं करना।
४ -हरी सब्जियां ,जौ , बाजरा, मंडुआ आदि मोटा पारम्परिक सुपाच्य भोजन सुपाच्य फल क्रीम निकला दूध का सेवन करना। 

Friday, November 22, 2013

<<<<"जीवन कि वास्तविकता">>>> ,
संयोग के साथ वियोग अवयश्यम्भावी है..............!
प्रत्येक  पल में बदलाव आ रहा है.…!!
किसी भी पल को बांधे रखने का प्रयास व्यर्थ ही होगा .…!!!
हमारा अतीत कितना भी मधुर क्यों न हो.…… !!!!
।।.……वह रुकने से रहा.…।।
उसकी स्मृति सुखद भी हो सकती है.…!
.... और रुलाने वाली भी.…!!
…  किन्तु …
केवल पुरानी यादों में डूबे रहना वर्तमान  के प्रति अन्याय है.… !!!
(सत्य .... शर्मा )

Thursday, November 21, 2013

चन्द्रमा - The Moon

                                     <<< " विज्ञान और हमारा चन्द्रमा ">>>
                   चन्द्रमा , हमारी कल्पनाओं में सर्वाधिक सुन्दर , शीतल ,सुखद और प्रिय स्वरुप में बसा हुआ है।  बाल्यावस्था में ही चन्द्रमा सेहमारा  नाता  जोड़ दिया जाता रहा  है और वो भी सबसे नजदीकी प्यारा रिश्ता -मामा का।बाल कृष्ण का मैं " तो चन्द्र खिलौना लेहों "इसी कि अभिव्यक्ति कवि सूरदास जी ने बल कृष्ण के मुख से करायी  है।  युवावस्था में उसमे प्रियतम को उसकी प्रिया का मुख नजर प्रतीत होने लगता है ,और उसको इंगित कर प्रेमी प्रेमिका अपना प्यार, अपना विछोह, अपना दर्द बांटते रहे हैं।  भारतीय साहित्य में चंद्रमा का जितना सजीव वर्णन हमें प्राप्त होता है उतना किसी और साहित्य में कम ही दृष्टिगोचर होता है।चन्द्रमा सौंदर्य का प्रतिरूप माना  जाता रहा है।
             किन्तु तर्क शास्त्रियों द्वारा तर्क दिए जा रहें हैं कि अब तो वैज्ञानिक तरीकों के द्वारा हमने चंद्रमा को निकट से जाकर देख लिया है जिससे यह स्पष्ट हो चूका है कि चन्द्रमा में किसी प्रकार का सौंदर्य विद्यमान नहीं है. इसलिए अब चन्द्रमा कि उपमा सौंदर्य के लिए उपयुक्त नहीं है और जहाँ जंहा भी इसका वर्णन है उसे भी हटा देना चाहिए।
              भले ही तात्विक दृष्टि से चन्द्रमा सुन्दर न हो परन्तु आज भी हम जब आकाश में स्थित पूर्ण  चन्द्र को निहारते हैं  तो उसमे आज भी हमें वही  अनुभूति होती है , आज भी उसका सौंदर्य वैसा ही प्रतीत होता है।  बालक आज भी उसे देख कर उसी प्रकार हर्षित होते हैं ,प्रेयसी आज भी उसको अपना दर्द बांटती है और प्रेमी भी अपनी प्रिया कि उपमा उससे ही देना अच्छा मानता है। उससे आज भी हमारा वही अपना प्यारा रिश्ता बना हुआ है।
        आयुर्वेद साहित्य में चन्द्र किरणो के माध्यम से पित्त जन्य , काम ज्वर आदि रोगों  को शांत करने का वर्णन प्राप्त होता है।  शरद चन्द्र पूर्णिमा कि रात्री में विशेष तरीके से बनी खीर को समस्त रात्री चन्द्र किरणो से आच्छादित कर सेवन करने से श्वास रोग को नाश करने का भी वर्णन आयुर्वेद ग्रंथों में प्राप्त होता है।
भारतीय महिलांओं द्वारा अपने पति और पुत्र कि दीर्घायु और स्वस्थ जीवन के लिए व्रत रखकर उपासना कि जाती रही है।
विज्ञानं के कारण चन्द्रमा कि सुंदरता कम हो नहीं हो  गयी  है। चन्द्रमा में आज भी उतनी ही शीतलता उपस्थित है जितनी कि पूर्व में थी। ज्योतिष शास्त्र में उसको आज भी वाही स्थान प्राप्त है और उसकी कमी को पूर्ण करने के लिए सम्पूर्ण भारत ही नहीं अपितु अनेको देशों के ज्योतिषज्ञ उपासना आदि अनेकों उपाय करते हैं। इसका अभिप्राय है कि विज्ञानं ही सब कुछ नहीं है।
                                                                               

Sunday, November 17, 2013

सूर्य

                       भारतीय सनातन संस्कृति की में पञ्च देव का बहुत ही महत्व रहा है। इन पञ्च देवों में सूर्य का विशेष  महत्व  है ,क्यों कि सूर्य ही एक मात्र ऐसे देव हैं जिनका हम प्रत्यक्ष दर्शन कर उनकी कृपा और दया से पुष्पित और पल्लवित हो रहें हैं।
                      सूर्य वास्तव में सबसे अधिक दयालु देव हैं। वे किसी से पक्षपात नहीं करते , सभी उनकी कृपा के अधिकारी हैं , गरीब से गरीब और अमीर से अमीर कोई भी उनकी कृपा प्राप्त कर सकता है, यदि हम कहें कि गरीबों के लिए वे अत्यधिक सुलभ हैं तो अतिश्योक्ति न होगा।  संसार के समस्त प्राणी चाहे वे अच्छे हों या बुरे सभी उनके प्रकाश के अभिलाषी रहते हैं ऐसा कोई न होगा जो उनकी किरणो का लाभ नहीं लेना चाहता होगा। 
                     सूर्य देव जहाँ शीत (ठण्ड) का हरण कर उष्णता प्रदान करते हैं वहीँ अंधकार को दूर कर प्रकाश के द्वारा  जीवन को गति देते हैं।  इसके अतिरिक्त सूर्य कि किरणें  हमारे जीवन को दुखमय बनाने वाले विषाणुओं को भी अपने प्रकाश एवं उष्णता से नष्ट करती  हैं।  सूर्य कि किरणों में अनेक रोगों को नाश करने की शक्ति है।  वहीँ आस्तिक जन उनकी उपासना कर अपने पापों और दुखों से छुटकारा पातें हैं। सूर्य कि प्रातः कालीन रश्मियों का सेवन शरीर  के लिए अत्यंत  उपयोगी है। अतः हमें नित्य प्रातः उदित होते सूर्य कि किरणों से लाभ लेना चाहिए। ये शरीर में आये रोगों यथा विटामिन डी कि कमी , अस्थियों ,नेत्र  एवं त्वचा के रोगों को दूर करने में सहायक होंगी और हमारे जीवन को दीर्घता प्रदान करेंगी
 
                    यूँ तो सूर्य को प्राचीन रोम , यूनान मिश्र आदि अनेक देशों में विशेष स्थान मिला है,उनको देवता माना है।  प्लिनी के अनुसार रोम में ६०० वर्षों तक रोमवासी सुर्यरश्मियों से ही चिकत्सा करते थे. पुरातत्व कि खोजों ने स्पष्ट किया है कि यूनान में लोग अपने भवनों में एक लम्बी गैलरी बनवाया करते थे जिसमे वे सूर्य रश्मियों का सेवन करते थे। प्राकृतिक चिकित्सा के जनक हिपोक्रेट्स (ईसा से ४०० वर्ष पूर्व) अपने रोगियों को सूर्य चिकत्सा द्वारा ठीक किया करते थे।जापान में सूर्य के अनेक मंदिर हैं।  दक्षिण अमेरिका में भी एक विशाल सूर्य मंदिर स्थित है।
                       किन्तु भारत में प्राचीन काल से ही सूर्योपासना को विशिष्ट स्थान प्राप्त रहा है, सूर्य को सारे संसार कि आँख कह कर सम्बोधित किया गया है। प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद में "सूर्य आत्मा जगतस्तुस्थुषच"।।अर्थात सारे जगत कि आत्मा कहा है। प्राचीन भारत के वैज्ञानिक ऋषि मुनियों ने सूर्य चिकत्सा विज्ञानं में अत्यधिक प्रवीणता प्राप्त कि थी। महर्षि विश्वामित्र का नाम इस विज्ञानं में अग्रणी श्रेणी में आता है ,उन्होंने गायत्री उपासना द्वारा सूर्य विज्ञानं में विशेषज्ञता प्राप्त कि थी। आज भी हिन्दू अपनी त्रिकाल संध्या में सूर्योपासना के माध्यम से मानसिक , शारीरिक एवं आत्मिक ज्ञान कि वृद्धि करतें हैं और इसके द्वारा अपने को स्वस्थ रख बुद्धि प्रखर करतें हैं।
प्रसिद्ध आयुर्वेदिक चिकित्सा ग्रन्थ अष्टांग संग्रह में वर्णित है : - 
                                              "नमः सूर्याय शान्ताय सर्वरोग विनाशिने। 
                                                आयुरारोग्यमैश्वर्यदेहिदेव नमोस्तुते"।।
                      अर्थात समस्त रोगों के नाशक शांति ,आयु , आरोग्य और ऐश्वर्य के दाता सूर्य देव आपको नमस्कार हो।
                        इस वंदना से ज्ञात होता है कि सूर्य हमारे कितने हितैषी और उपकारक देव हैं। वेदो में सूर्य को मित्र भी कहा गया है। यजुर्वेद में सूर्य को "चक्षोः सूर्यारेजायत "अर्थात सूर्य भगवान का नेत्र है , वास्तव में सूर्य भगवान  का ही नहीं अपितु हमारे भी नेत्र हैं क्यूंकि उसके प्रकाश से ही हम समस्त सृष्टि को देख सकतें हैं सूर्य के प्रकाश के अभाव  में हम नेत्रहीन कि भांति ही हैं।
                       सूर्य रश्मियाँ जड़ एवं चेतन सभी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण, जीवनदायनी के रूप में मान्य हैं। जल ,वायु कि तरह ही सूर्य का प्रकाश हम  सभी के लिए सर्वाधिक आवश्यक तत्वों में से एक है , इसके बिना सुव्यवस्थित जीवन कि कल्पना करना बेमानी ही है।
        स्वास्थ्यप्रद :-       प्रातःकाल उदीयमान  सूर्य कि कोमल किरणें जब हमारे शरीर को स्पर्श करती हैं तो हमारे शरीर में एक नवीन ऊर्जा का संचार उत्पन्न होता है और हमारा मस्तिष्क एक विशिष्ट चुंबकीय शक्ति प्राप्त करता है जो मनुष्य को बुद्धिमान बनाती है ,शरीर में रक्त प्रवाह कि गति उत्तम होती है , त्वचा के माध्यम से विटामिन डी कि आपूर्ति होती है जिसके अभाव  में हमारे शारीर में अनेकों रोगों कि उत्पत्ति हो सकती है।
                  वैदिक साहित्य के अनुसार सूर्य उदय से अस्त होने तक अपनी किरणो के माध्यम से अंधकार को नाश कर समस्त दृश्य एवं अदृश्य कृमियों को नष्ट करता है।वेदों में सूर्य कि उपासना सम्बन्धी अनेकों ऋचाएं उपलब्ध हैं जो इस बात को स्पष्ट रूप से घोषित करती हैं कि भारतवासी आदि काल से है सूर्य कि उपयोगिता से पूर्णतः परिचित ही नहीं थे बल्कि उसका सदुपयोग कर सुखमय जीवन व्यतीत करते थे।  सूर्य ह्रदय रोग ,पाण्डु  ,कामला ,हलीमक  आदि अनेक रोगों को नष्ट करता है , सूर्य से प्रार्थना कि गई है कि वह सिरदर्द , खांसी और जोड़ों के दर्द दो दूर करे। द्वापर में श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को कुष्ठ रोग होने पर सूर्य चिकित्सा के माध्यम से ही मुक्ति प्राप्त हुई थी।
                  हमारे पूर्वज सूर्योपासना के माध्यम से बुद्धिमान बने ,त्रिकाल संध्योपासना में गायत्री मन्त्र द्वारा सूर्य कि ही उपासना कि जाती है सूर्य केवल प्रकाश और ऊष्मा ही नहीं देता अपितु बुद्धि  और दीर्घायु भी प्रदान करते  है :-
                        " सवितानः  सुवतु सर्वातितं सवितानो रास्तांदीर्घमायुः"। 

                   वेदों में सूर्य कि उपासना सम्बन्धी अनेकों ऋचाएं उपलब्ध हैं जो इस बात को स्पष्ट रूप से घोषित करती हैं कि भारतवासी आदि काल से है सूर्य कि उपयोगिता से पूर्णतः परिचित ही नहीं थे बल्कि उसका सदुपयोग कर स्वस्थ एवं  सुखमय जीवन व्यतीत करते थे।
                       
                                                

Saturday, November 16, 2013

सदाचार और शिष्टाचार

                     
                         शिष्टाचार किसी भी समाज कि जीवन शैली और व्यवहार का आईना होता है।  किसी भी व्यक्ति के द्वारा किये गए शिष्टाचार से हम उसके व्यक्तिगत,सामाजिक एवं आंतरिक आचार विचार से रुबरु हो सकते हैं। प्रत्येक समाज के शिष्टाचार में वहाँ कि आकांक्षा,आदर्श और मर्यादायें समाहित रहती हैं।                             हिन्दू समाज एक ऐसा समाज है जो बिना धर्म और दर्शन के कुछ नहीं करता यहाँ प्रत्येक आचार धर्म पर आधारित और दार्शनिक तथ्य रखता है यह कल्पना पर आधारित शिष्टाचार नहीं अपितु मजबूत आधार भूमि पर स्थापित है. भारतीय हिन्दू समाज में स्त्री ,पुरुष ,बालक बालिका , बुजर्गों एवं अतिथियों आदि के साथ आपस में सामाजिक व्यवहार  सदा से नैतिक ही रहा है।  हाँ वर्तमान  में पाश्चात्य भोगवादी संस्कृति के जाल ने इस पर भीषण प्रहार किया है और हम इस प्रहार को उपहार समझ कर प्रफुल्लित हो रहे हैं।
                    भारतीय प्राचीन मनीषियों द्वारा प्रतिपादित शिष्टाचार के नियम जहाँ शारीरिक मानसिक एवं सामाजिक बिमारियों से बचाकर रखते हैं वंही मन मस्तिक और हृदय को बल प्रदान करते हैं और ये नियम वैज्ञानिक सिद्धांतों से परिपूर्ण भी हैं। जो संक्षेप में निम्नवत हैं :-

       १ , भारतीय संस्कृति में बच्चों के सुन्दर और प्यारे नाम रखने कि परम्परा रही है और ये नाम प्रेरणाप्रद होते हैं। अतः इस परम्परा को विकृत न करें।
       २. किसी मित्र या रिश्तेदारत के घर जाओ तो उनके बच्चों को अपने प्यार का परिचय दो।
       ३. किसी विशेष अवसर पर उनको आमंत्रित करो तो उनके बच्चों को बुलाना न भूलें।
       ४. बच्चों को प्राकृतिक ,धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों पर ले जाते रहना चाहिए।
       ५. बच्चों को अपने समय के महान पुरुषों ,विद्वानों ,नेताओं से कभी कभी मिलवाना चाहिए।
                                                                                           (शेष फिर~~~~~~~~~ )

Thursday, November 14, 2013

सूर्य

                   
                      भारतीय सनातन संस्कृति की में पञ्च देव का बहुत ही महत्व रहा है। इन पञ्च देवों में सूर्य का विशेष  महत्व  है ,क्यों कि सूर्य ही एक मात्र ऐसे देव हैं जिनका हम प्रत्यक्ष दर्शन कर उनकी कृपा और दया से पुष्पित और पल्लवित हो रहें हैं।
                      सूर्य वास्तव में सबसे अधिक दयालु देव हैं। वे किसी से पक्षपात नहीं करते , सभी उनकी कृपा के अधिकारी हैं , गरीब से गरीब और अमीर से अमीर कोई भी उनकी कृपा प्राप्त कर सकता है, यदि हम कहें कि गरीबों के लिए वे अत्यधिक सुलभ हैं तो अतिश्योक्ति न होगा।  संसार के समस्त प्राणी चाहे वे अच्छे हों या बुरे सभी उनके प्रकाश के अभिलाषी रहते हैं ऐसा कोई न होगा जो उनकी किरणो का लाभ नहीं लेना चाहता होगा। 
                     सूर्य देव जहाँ शीत (ठण्ड) का हरण कर उष्णता प्रदान करते हैं वहीँ अंधकार को दूर कर प्रकाश के द्वारा  जीवन को गति देते हैं।  इसके अतिरिक्त सूर्य कि किरणें  हमारे जीवन को दुखमय बनाने वाले विषाणुओं को भी अपने प्रकाश एवं उष्णता से नष्ट करती  हैं।  सूर्य कि किरणों में अनेक रोगों को नाश करने की शक्ति है।  वहीँ आस्तिक जन उनकी उपासना कर अपने पापों और दुखों से छुटकारा पातें हैं। सूर्य कि प्रातः कालीन रश्मियों का सेवन शरीर  के लिए अत्यंत  उपयोगी है। अतः हमें नित्य प्रातः उदित होते सूर्य कि किरणों से लाभ लेना चाहिए। ये शरीर में आये रोगों यथा विटामिन डी कि कमी , अस्थियों ,नेत्र  एवं त्वचा के रोगों को दूर करने में सहायक होंगी और हमारे जीवन को दीर्घता प्रदान करेंगी

Sunday, July 21, 2013

supryas

                 Supryas kalyan samitee , a social welfare society, that works in the field of education, health and social activities to improve the position of the poor and handicaped persons and their childrens since 2003.
In the field of education Supryas adopts needy poor students every year.
                 In this educational year of 2013- 14 Supryas adopted 38 students today in a simple program at Thanaram Aashram,Bhupatwala, Hardwar. The chief guest Dr.Sunil Batra, head of the deprtment of Commerce SMJN pg college hardwar,and Mr.Satpal Brhamchari,(formar Municipal chairman ) distributed the educational material to the needy students.
                 Adressing to the students the chief guest advised them to do their best to achive their goals. Supryas is arranging the facility and atmosphere for your education and now you have to prove yourself that you deserve it. all the students are the future of the nation .one will became a doctor, other an engineer ,one will be a administer of country and some of you will be officer or teacher, All of you are the bright future of our country , I hope you will surely get your aims.My best wishes are with you. and I am proud to be a chief guest of this program. and thankful to the members of Supryas  ,they are serving the poor.

Sunday, July 7, 2013

सुप्रयास वार्षिक आंकलन


                                वार्षिक प्रगति २०१२ -१३

प्रियजन,


... आपके सुझाव,सहयोग एवं मार्गदर्शन में सुप्रयास संस्था विगत 9 वर्षों से शिक्षा,स्वास्थ्य एवं समाजोत्थान की दिशा में निरंतर प्रयासरत चली आ रही है. वर्ष 2012 -13 मैं किये गए कार्यों का संक्षिप्त विवरण आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रही है।

* शैक्षिक वर्ष 2012 -13 मैं 40 प्रतिभावान किन्तु आर्थिक रूप से अशक्त विद्यार्थियों का चयन कर उनके एक वर्ष का शिक्षा व्यय वहन करने का उत्तरदायित्व संस्था द्वारा लिया गया था। इस पुनीत कार्य में डाo विपिन प्रेमी जी (रत्न भारती सेंटर ) द्वारा तीन विद्यार्थियों एवं श्री सुभाष शर्मा जी (प्रधान टाइम्स )द्वारा दो विद्यार्थियों की शिक्षा का व्यय वहन किया गया,संस्था आपकी हृदय से आभारी है।

* विशिष्ट सफलता -विगत सात वर्षों से संस्था के सहयोग से अध्ययन कर रही छात्राओं कु० गंगा सूद, कु० खुशबू ठाकुर एवं कु० नंदनी ने अपनी कक्षाओं में श्रेष्ठ प्रदर्शन किया। कु० गंगा सूद ने बी०ए ० परीक्षा उत्तीर्ण कर एल एल बी, कु० खुशबू ठाकुर ने बारहवीं प्रथम श्रेणी 70 प्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण कर एम्० बी० बी० एस० की प्रवेश परीक्षा की तैय्यारी प्रारंभ कर दी हैं कु० नंदनी शार्प मेमोरियल स्कुल फॉर द ब्लाइंड्स देहरादून में प्राइमरी में श्रेष्ठ आ कर आगे उन्नति के मार्ग पर प्रशस्त है (ज्ञातव्य हो की दो वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्टार पर इन्होने द्वितीय स्थान प्राप्त किया था).

* शैक्षिक कार्यशाला -परीक्षाओं के तनाव को दूर कर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकें इसके लिए समाजशास्त्र विशेषज्ञों के निर्देशन में एक कार्यशाला का आयोजन संस्था द्वारा कराया गया जिसमे विशेषज्ञ डा० जगदीश चन्द्र एवं डा० संजय महेश्वरी जी द्वारा छात्रों की समस्याओं एवं जिज्ञासाओं का समाधान किया गया और उनको उन्नति के मार्ग पर चलने को प्रेरित किया गया।

          कार्यशाला में जिज्ञासाओं का समाधान करते विशेषज्ञ एवं छात्र
 * शैक्षिक भ्रमण -वार्षिक शैक्षिक भ्रमण में "जलीय विद्युत् उत्पादन एवं वितरण" विषय अंतर्गत छात्रों को चीला (पौड़ी गढ़वाल ) स्तिथ "जल विद्युत् पावर संयत्र का प्रत्यक्ष अवलोकन करा संयंत्र के विशेषज्ञ अभियंताओं की देखरेख में कराया तथा उनकी उत्पन्न जिज्ञासाओं का समाधान कराया गया।साथ ही तैरते बिजलीघर को भी दिखाया गया।
                    चीला पॉवर हाउस एवं उसको अवलोकन करने जाते छात्र
                                                    तैरता विद्युत् उत्पादन केंद्र
भोगपुर तल्ला (पौड़ी गढ़वाल ) स्थित निराश्रित 200 छात्रों के आवासीय विद्यालय वन्देमातरम सेवा कुञ्ज में विषम परिस्थतियों में किस प्रकार छात्रों को श्रेष्ठ नागरिकों के निर्माण का कार्य सफलतम ढंग से हो रहा है का अवलोकन छात्रों को करा उनकी जीवन शैली से प्रेरणा लेने का प्रयास किया गया। सुप्रयास के छात्रों एवं सदस्यों द्वारा कुञ्ज स्थित छात्रों के साथ सहभोज भी करा।

                                   वन्दे मातरम सेवाकुंज में छात्र एवं सदस्य 

*रक्त दान -संस्था के युवा साथियों एवं सहयोगियों द्वारा गंभीर अवस्था से जुझ रहे रोगियों के जीवन रक्षण हेतु रक्त दान द्वारा सहयोग किया गया। इस पवन कार्य हेतु श्री चंद्रकांत भट्ट जी .श्री पुष्पेन्द्र कुमार जी व श्री सुमित बंसल जी द्वारा कु० कंचन के , श्री कमल पांडे जी, श्री सचिन मोहन जी एवं श्री तरुण जी द्वारा माई रुद्रा गिरी जी को ,श्री रमेश जी रतूड़ी . श्री शिवम् नारायण शर्मा द्वारा श्रीमती प्रियंका शर्मा को तथा कु० सुनीता कश्यप द्वारा एक रोगिणी को रक्त दान किया।

संस्था आपके निरंतर सुझाव वसहयोग की आकांक्षा रखती है ,और आपकी उन्नति की कामना करती है।