Saturday, March 31, 2012

राजा भोज का मक्का में मक्केश्वर पूजन "

<<<<<<" राजा भोज का मक्का में मक्केश्वर  पूजन ">>>>>
२०६९ वर्ष से पहले राजा भोज ने मक्का में जाकर वहां स्थित प्रसिद्ध शिव लिंग मक्केशावर का पूजन किया था ,इसका वर्णन भविष्य-पुराण में निम्न प्रकार है :-
                                                "नृपश्चैवमहादेवं  मरुस्थल  निवासिनं !
                                                गंगाजलैश्च संस्नाप्य पंचगव्य समन्विते : 
                                                 चंद्नादीभीराम्भ्यचर्य तुष्टाव  मनसा हरम !
                                                  इतिश्रुत्वा  स्वयं देव: शब्दमाह नृपाय  तं!
                                               गन्तव्यम  भोज राजेन महाकालेश्वर स्थले !! "
                                                                                                                       (सत्य ...शर्मा )

Thursday, March 29, 2012

वेदव्यास जी का ईरान भ्रमण ">

"<<<<<<< वेदव्यास जी का ईरान भ्रमण ">>>>>>>>>>
अठ्ठारह पुराणों के रचियता महर्षि वेदव्यास जी  इरान में वहां के विद्वानों को शास्त्रार्थ में हराकर आये थे !
उस समय वहां पर गश्ताशप नाम का राजा राज्य करता था  . व्यास जी ने इरानी प्रतिवादी को शास्त्रार्थ में पराजित किया था जिस पर उनको वहाँ पर बहुत सम्मान प्राप्त हुआ एवं प्रतिष्ठा प्राप्त हुई ! इस विषय में पारसियों के धर्मग्रन्थ  ' शातीर '  में उल्लिखित है  :- 
              

                               "अकनु बिरमने व्यास्नाम अज हिंद आयद  !                                दाना कि  अल्क    चुना  नेरस्त  !!

अर्थात  :- "व्यास नाम का एक ब्राह्मन हिन्दुस्तान से आया . वह बड़ा ही  चतुर  था और उसके सामान अन्य कोई बुद्धिमान नहीं हो सकता  ! "
(सत्य ..शर्मा )

Wednesday, March 28, 2012

अद्भुत योगी

"पोटेशियम साइनाइड ( KCN ) खाकर भी जीवित रहने वाले भारतीय योगी "
पोटेशियम साइनाइड अत्यंत तीक्षण महाविष  है जो एक पल से भी कम समय में किसी भी प्राणी की जीवन लीला को समाप्त कर सकता है.विज्ञान द्वारा स्थापित इस सत्य को भारत के एक योगी ने असत्य प्रमाणित कर दिया !
      १६ जनवरी  सन १९३२ में विश्व के महानतम वैज्ञानिकों  सर सी० वि० रमण की अध्यक्षता में कलकत्ता विश्वविद्यालय में इस विलक्षण और अविश्वसनीय  प्रदर्शन का आयोजन हुआ !
      कलकाता विश्वविद्यालय के विज्ञान विभाग के रीडर डा० नियोगी ;इसी विश्वविद्यालय के फेकल्टी ऑफ़ साइंसके डीन डॉ० भट्टाचार्य ;रसायन शास्त्र विभाग के हेड ऑफ़ द डिपार्टमेंट डॉ० सरकार आयोजन कमेटी में थे !
     इसकी सूक्षम जांच समिति में पञ्च सदस्य थे :- १ ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय इंग्लेंड के विज्ञान विभाग के अध्यक्ष ;२ पेरिस विश्वविद्यालय फ़्रांस साइंस फेकल्टी के डीन ; ३ न्यूयार्क विश्वविद्यालय अमेरिका के विज्ञानं रीडर ;४ मद्रास विश्ववद्यालय के एक प्रोफ़ेसर  तथा ०५ डॉ०नियोगि कलकत्ता विश्वविद्यालय  !
सम्पूर्ण दस्तावेजी प्रिक्रिया पूरी करने तथा योगी  नरसिंह स्वामी का पूर्ण परीक्षण के बाद पाहिले योगी के हाथ पर तेज तेजाब रखा गया उओगी उसे शहद की भांती चाट गए .पश्चात संखिया .कुचला आदि विष भी जब उन्होंने खा लिए .
अंतत सर्वसम्मती से योगी नरसिंह स्वामी को संसार का तीक्षणतम विष पोटेशियम साइनाइड ( KCN ) दिया
जय माँकाली का उद्घोष कर योगी ने उस तीक्षण विष को निष्क्रिय पदर्थ की भांति खा लिया और कड़े मुस्कुराते रहे .सम्पूर्ण सभागार में सुचिभेद सन्नाटा छा गया ,कुछ मिनटों के बाद तालियों की गडगडाहट ने उस सन्नाटे को भंग किया .सभी उनके चरण स्पर्श करने को होड़ लगाने लगे  और चरण स्पर्श कर अपनी श्रधा व्यक्त करने लगे !
(सत्य..शर्मा )

Tuesday, March 27, 2012

यादों का वो कारवां

>>>>>>>>>> "माँ "<<<<<<<<<
दूध के गिलास  में प्यार को यूँ घोलना
       बंद मुठ्ठियों को मेरी यूँ धीरे धीरे खोलना !
                   रूठना ,दुलारना ,और फिर वो मनाना
                                 याद आता है मुझे माँ यादों का वो कारवां !!

"पदार्थ का परमाणु विज्ञान - भारत की देन है "

               <<<<<<<,"पदार्थ का परमाणु विज्ञान  - भारत की देन है ">>>>>>>.
६०० सदी ईसापूर्व भारत  के दार्शनिक ऋषि विज्ञानिक "कणाद " ने अपने वैशेषिक सूत्र का प्रतिपादन किया था .
इस वैशेषिक दर्शन का सार है - "पदार्थ का परमाणु सिद्धांत".कणाद ऋषि को उनकी परमाणु आविष्कार के लिए जाना जाता है 
        उन्होंने ही पदार्थ अविभाजित होने वाले सुक्षम्तम कण को परमाणु नाम दिया था .इस सिद्धांत के अनुसार समस्त वस्तुए परमाणु से बनी हैं .और कोई भी पदार्थ का जब विभाजन होना समाप्त हो जाता है तो उस अंतिम अविभाज्य कण को ही परमाणु कहतें हैं .यह ना तो मुक्त स्थिति में रहता है और ना ही इसे मानवीय नेत्रों से अनुभव किया जा सकता है .यह शाश्वत और नस्त ना किये जाने वाला तत्व है .
       कणाद के अनुसार जितने प्रकार के पदार्थ होते हैं उतने ही प्रकार के परमाणु होते हैं ,प्रत्येक पदार्थ की अपनी ही प्रवृति और गुण  होतें  है .जो उस परमाणु के वर्ग में आने वाले पदार्थ के समानहोती है ,इसलिए इसे वैशेषिक सूत्र सिद्धांत कहते हैं !
        कणाद के एटमिक थ्योरी को तात्कालिक यूनानी दार्शनिकों से कहीं अधिक उन्नत और प्रमाणिक थी !
 (सत्य ...शर्मा )

<"कितना गहरा है सागर ?">

<<<<<<<<<"कितना गहरा है सागर ?">>>>>>>>
सम्पूर्ण विश्व का कुल ७१% भाग समुद्र में समाया हुआ है .इसका क्षेत्रफल ३६१ मिलियन वर्ग कि०मि०  है .
इसकी औसत गहराई लगभग ३७३० मीटर है  और कुल आयतन १३४७०००मिलियन घन कि ० मी० है .
महासागर का सबसे गहरा भाग प्रशांत महासागर का मरीना ट्रेंच है ,जिसकी गहराई ११,५१६ मी० है .
जबकि पृथ्वी का सबसे ऊँचा भाग " माउन्ट एवरेस्ट " है 

Monday, March 26, 2012

ॐ जय जगदीश हरे

"ॐ जय जगदीश हरे " यह आरती भारतीय हिन्दुओं के तन मन और आत्मा तक को आनंद से परिपूर्ण कर एक अद्भुत शान्ति प्रदान करती है .कारुणिक आत्मिक एवं आध्यात्मिक विचारों से परिपूर्ण इस आरती को सर्वप्रथम किस व्यक्ति ने लिखा था ? कहाँ लिखा था? तथा किस भाषा में लिखा था ? जाने :- 
       सन १८६० में पंजाब प्रान्त के फिल्लोर नामक स्थान के एक विद्वान "पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी "ने घर घर में गाईजाने वाली इस आरती को सर्वप्रथम अरबी - फारसी लिपि में लिखा था .कारण की उस काल में पंजाब में यही लिपि मान्य थी . भारत के अबतक के इतिहास में सर्वाधिक लोकप्रिय आरती यही है .

माँ,

>>>>>>>>>>> " माँ "<<<<<<<<<<
जब थक जाएँ हैं   कदम  उठती है हूक
जब भर आतें हैं नयन   जुबान होती है मूक !
रिश्तों की भीड़ से  नहीं मिटती अब भूख
अब आ भी जाओ माँ,  आ जाओ ना !!

Sunday, March 25, 2012

शक्ति -पूजा



<<<<<< "शक्ति -पूजा ">>>>>>>>
प्राचीन भारत मेंदेवताओं के साथ साथ देविओं का भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रहा है . शक्ति पूजा अनुयायीयों  को शाक्त धर्मी कहा जाता था ,शाक्त धर्मं का शैव धर्म से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है . इसकी प्राचीनता प्रगेतिहासिक काल तक जाती है:-
सिन्धु सभ्यता काल में मातृ देवी के रूप में  पूजा की जाती थी !.
वैदिक साहित्य  में  उषा ,अदिति ,सरस्वती ,श्री लक्ष्मी आदि देविओं का वर्णन मिलता है !.
ऋग्वेद के दसवें मंडल में वाक् -शक्ति की उपासना है !
महाभारत में देवी महत्तम का विस्तृत विवरण है ! इस समय तक शाक्त धर्म ठोस आकार ले चुका था युद्धकाल में कृष्ण अर्जुन को दुर्गा उपासना करने को कहतें हैं !
मार्कंडेय पुराण में दुर्गा सप्त शती अंश का पाठ नवरात्रों में आज भी किया जाता है !

शक्ति की तीन रूपों में उपासना :- 

शांत या सौम्य स्वरुप में :-उमा ,पार्वती,लक्ष्मी , ये माँ के सौम्य रूप हैं !
उग्र या प्रचंड रूप में : -   दुर्गा ,काली  और चामुंडा ये माँ के उग्र रूप हैं !
काम प्रधान रूप में : - आनंद , भेरवी, और त्रिपुरा सुंदरी ये माँ के काम प्रधान स्वरुप हैं !
माँ के ये तीनों रूप आज भी विद्यमान हैं  ! सौम्य रूप में  जम्मू की वैष्णव  देवी !,उग्र रूप में कोलकत्ता में काली मंदिर  तथा काम रूप में आसाम के कामख्या देवी !


अत्यंत प्राचीन सिधु - सभ्यता में मातृ पूजन

<<<<<<< "  अत्यंत प्राचीन सिधु - सभ्यता में मातृ पूजन ">>>>>>>>>>>
वासंतिक नवरात्र  विक्रमी संवत २०६९ " मातृ- पूजन " के तीसरे दिवस को चंद्रघंटा के रूप में पूजा गया .
हमारे देश में ही नहीं अपितु विश्व के अनेक भागों में लोग माँ की पूजा अर्चना करतें हैं .मातृ  पूजा की परम्परा प्राम्भिक काल से मिलती है .!
नारी की महत्ता ,शक्ति .दया ,करुणा,एवं सहनशीलता के प्रति मानव का उसके प्रति कृतज्ञता ,समर्पण,और समर्पण की स्वीकारोक्ती का प्रतीक ही है !
ईतिहास में सर्वाधिक प्राचीन सभ्यताओं में से एक 'सिन्धु सभ्यता 'के प्राप्त अवशेषों में भी इस बात की पुष्टी होती  है ! उत्खनन से प्राप्त अवशेषों में नारी के अनेक रूपों में प्रतिमाएं इसकी साक्षी हैं ! 
नारी की  एक प्रकार की प्रतिमा में उसके गर्भ से वृक्ष उत्पत्ति का द्रश्य उसके जीव जगत उत्पत्ती को इंगित करता है !
नारी की अन्य प्रतिमा में शिशु को स्तनपान कराते का दृश्य उसके जीव-पालन को दार्शाता है !
नारी की अन्य एक प्रतिमा के सर पर पंख फैलाये एक पक्षी का दृश्य उसके संहारक रूप को दर्शाता है !
ये तीनो स्वरुप "आद्या शक्ति महासरस्वती ,महालक्ष्मी एवं महाकाली" के ही रूपांतर हैं ! ईतिहास कारों के अनुसार ये प्रतिमाएं  उनके धार्मिक जगत का चित्रण कराती हैं.!

Thursday, March 22, 2012

नववर्षाभिनन्दनम"

                                     <<<<<<<<<<" नववर्षाभिनन्दनम" >>>>>>>>.
               भारतीय हिन्दू  विक्रमी  नवसंवत्सर २०६९ 'विश्ववसु' दिनांक २३ -३-२०१२ दिन शुक्रवार से राजा व् मंत्री शुक्र के सानिध्य में उपस्थित हो रहा है .यह नव वर्ष आपके जीवन में नव  उल्लास .उत्साह एवं उत्कर्ष की बौछार करे !.
                साथ ही बासंतिक नवरात्र के शुभारम्भ पर आद्यशक्ति  महाकाली , महालक्ष्मी एवं महासरस्वती  आपके परिवार को  आरोग्य एश्वर्य सुख  समृधि से परिपूरित करें  !.
            इन्ही मंगल कामनाओं सहित आपको  "भारतीय नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं  !

Wednesday, March 21, 2012

शारीरिक सौदर्य

पार्थिव सौन्दर्य जिसे हम शारीरिक सौदर्य भी कहते हैं वास्तव में नीच गति की और ले जाता है ,जिसके कारण हम सौन्दर्य और अपना दोनों को ही नष्ट कर लेते हैं .उद्धरण के लिए एक सुरभित  सुन्दर पुष्प हमें अपनी और आकृष्ट करता है ,तुरंत ही हमारे मन में उसे प्राप्त करने की अभिलाषा उत्पन्न होती है,हम निष्ठुरता से उसे डाल से तोड़ कर अपने नेत्रों और नासिका को क्षणिक आनंद प्रदान करतें हैं .थोड़ी देर के बाद वह पुष्प अपना सौंदर्य और सुरभि खो देता है ,तब हम उसको धुल में फेंक कर, पेरों से रोंदते हुए चल पडतें हैं .
 " भौतिक सौन्दर्य की यही परिणिति है "

उलझने

           *   वनस्पति शास्त्री यह नहीं बता पाते कि पहले बीज की उत्पत्ति हुई या फल की ?
         **   जीव विज्ञानी यह नहीं बता पाते कि पहले पक्षी हुआ या अंडा ?
       ***   व्यवहारी मानववेत्तायह नहीं जान पाए कि फल की प्राप्ति कर्म से होती है या देव से ?
      ****  भौतिक शास्त्री यह सिद्ध नहीं कर पाए कि प्रकाश किरण रूप में फैलता है या कण -कण मे ?
    *****  सागर विज्ञानी  यह बताने ने असमर्थ हैं कि समस्त नदियाँ अथाह जल राशी समुद्र में पहुंचा रही हैं फिर 
                भी समुद्र में बाढ़ क्यों नहीं आ रही ?
  ******  शरीर विज्ञानी यह नहीं बता पाते कि शारीर में आत्मा कहाँ स्थित है ?
*******   रोग परीक्षा चिकित्सक जहाँ एक तरफ थूक को अत्यंत गन्दा एवं रोग प्रसारक बतातें हैं किन्तु  वही 
               चिकित्सक अपनी प्रेमिका अथवा प्रेमी के अधरों व्  जीभ को रसपान करता है . क्यों ?

<<<<<< "नाम बड़े और दर्शन छौटे ">>>>>>>>>>

गीध दुनिया का सबसे विचित्र पक्षियों में से एक है ,उसकी नेत्र ज्योती बहुत ही तेज होती है और पंखों में अद्भुत शक्ति होती है .! भारतीय साहित्य में "आँखें ज्ञान का प्रतीक मानी गयी हैं और पंख कर्म का"       जिनकी आँखे तेज होती हैं उनको बुद्धिमान और जिनके पंख तेज होतें हैं उनको पुरषार्थ एवं परिश्रमी  कहतें हैं.
विद्वानों का कथन है की "जो व्यक्ति अपने पुरुषार्थ के बल पर उच्च स्थान को पाकर भी तुच्छ कार्यों पर अपनी नजर गडाए रहतें हैं वे गीध ही हैं " 'क्योँ की गीध अपने पंखों के बल पर उचाईयों पर पहुँच कर भी भूमि पर पड़े सड़े मांस पर दृष्टी रखता है .अतः इसी उड़ान किसी का हित नहीं कर सकती !

भारतीय सिनेमा

प्रदर्शित होने वाली पहली भारतीय फिल्म थी "आलम आरा " इसका निर्माण 'इम्पिरिअल मुवीटोन' फिल्म कंपनी ने किया था .निर्देशन  निर्माता 'आर्देशिर इरानी 'ने स्वयं किया था . इस फिल्म के मुख्य कलाकार थे  -
मास्टर विट्ठल ,जुबेदा ,जिल्लो ,जगदीश सेठी ,और श्री पृथ्वीराज कपूर ने इस फिल्म में खलनायक की भूमिका निभाई थी .
इससे भी पहले मामा वारेरकर लिखित "तुकाराम ' फिल्म बनी थी किन्तु इस फिल्म के नेगेटिव पिघलकर खराब हो गए थे .
(सत्य....शर्मा )

Tuesday, March 20, 2012

भारतीय सिनेमा

सर्व प्रथम  7  जुलाई 1896  को वाटसन होटल मुंबई  में एक रुपया के प्रवेश शुल्क  पर लुमियर ब्रदर्स  फिल्म का प्रदर्शन हुआ था जिसे शहर के प्रतिष्ठित  व्यक्तियों ने देखा ,
इस फिल्म के प्रदर्शन पर जब बहुत भीड़ उमड़ने लगी  तो नावल्टी  में चार आने शुल्क पर प्रदर्शन प्रारंभ हुआ 
तभी से चवन्नी क्लास दर्शक  वर्ग बना ,प्रारंभ  में इंग्लिश फिल्मे ही दीखाई जाती थी .
1913  में पहली हिंदी फिल्म राजा हरिश्चंद्र श्री घुंडी राज गोविन्द ( दादा साहेब फाल्के ) ने बनाई  थी .
1914  में दूसरी हिंदी फिल्म " भस्मासुर मोहिनी " बनी जो असफल रही .
 1917  में "सत्यवान सावित्री " बनाई जो सफल रही .
कुछ लोग पुंडलिक  को पहली कथा फिल्म मानते हैं जो महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत थे के जीवन  पर आधारित थी  इस फिल्म को आर सी  तोरने एवं एन ए चित्रे ने बनाया था . यह फिल्म 18  मई 1912  को प्रदर्शित हुई .

भविष्य देश का

<<<<<<<<<< ' भविष्य बचाओ '>>>>>>>>>
"भविष्य देश का भटक रहा है गली गली में भूखा प्यासा 
रोने की भी जान नहीं है नहीं आंखों में नीर ज़रा सा !
एक एक दाने को हम तरसें कैसे हो हमारा पोषण 
शिक्षा स्वास्थ्य की बातें खोखली कहीं खो गया अब तो बचपन !!
मन के सपने मन में रहते कोई पीड़ा समझ न पाता
हम भी गाते गीत वतन के चलते तान कर अपना माथा !
तन है सूखा मन है खाली क्या यही है सुन्दर जीवन
करो प्रभु उदर पूर्ती हमारी नहीं तो ले लो वापस जीवन " !!
(सत्य ....शर्मा )
 

Monday, March 19, 2012

<"सच्ची सुन्दरता ">

<<<<<<<<<<"सच्ची सुन्दरता ">>>>>>>>>>>
सच्ची सुन्दरता वह है जिसके संपर्क से दूसरों में भी सुन्दरता आ जाए !
स्वयं की सुन्दरता केवल एक व्यक्ति तक ही सिमित है ,
जिसके सम्पर्क में आकर असुन्दर भी सुन्दर हो जाये  
वही सच्ची सुन्दरता है !!
<<<<<<<<<<"True Beauty">>>>>>>>>  'so
Tru beauty is that whose compeny makes other beautiful !
Self beauty is omly up to oneself ,
Whose compney changes ugly into beautiful
Is called 'The True Beauty'!!
(satya ...sharma)
 

Sunday, March 18, 2012

' नश्तर '

<<<<<<<< ' नश्तर ' <<<<<<<<<
"मदमस्त सपनो के ये कण आँखों में चुभते क्यों हैं 
बनकर नश्तर ये प्रेमाश्रु तडफाते क्यों हैं
किया क्यों रक्तरंजित इन नयनों की निर्मलता को !
जहां ना था रण,न विरोध ,न कोई ,दुराव 
था तो बस अपनत्व ,प्यार ,और चाहत कि देखूं तुमको " !!
(सत्य ....शर्मा ) 

बांटों ,मत करो बर्बाद अन्न





>>>>>"देखो -सोचो -और बांटों ,मत करो बर्बाद अन्न "<<<<
"पल -पल ,तिल -तिल ख़त्म होता सा ,केवल अस्थि -पिंजर का यह बदन 
फटी नुची जिन्दगी की ज़िंदा लाश ही तो हूँ मैं, क्यूँ मुझे भेजा या रब इस जहान में 
जहाँ मयस्सर नहीं एक दाना भी उदराग्नि के लिए ,और कहीं अनाज की बर्बादी है 
फिर किस इन्तजार में चल रही हैं ये साँसें ,क्या अभी बाकी है कोई गीध मुझे नौचने को !!"
(सत्य....शर्मा)

बांटों अन्न - करो जीवन रक्षण

<<<<<<<<"बांटों अन्न - करो जीवन रक्षण">>>>>>>> 
"नाम की हूँ मैं एक अभागिन माँ 
जीर्ण बाहू और शीर्ण शरीर ,न स्तन में दुग्ध न नयन में नीर 
तृप्त करना दो दूर रहा ,ना बुझा सकी तेरी क्षुधा !
घास -फूस खा- खा कर चाहा करें तेरा पोषण ,मेरे स्तन
शुष्क तन और छुब्ध मन ,रक्त - मेद रहित यह नीरस बदन
ना कर सका तेरी रक्षा !!
माता नहीं कुमाता बनी तेरी जननी, जो जन्म दिया तुझे यूँ मरने को
ना देना जन्म इस धरा भाग में ,ओ जगत के पालनहार
जहां नीर नहीं जहां क्षीर नहीं ना दीखता अन्न का सिन्धु
नहीं दे सकती अश्रु विदाई भी ,त्रस्त नैनों में नहीं शेष कोई जल बिंदु !!!"
<<<<<<<"Share your grain- Save life ">>>>>>>
"I am an unfortunate mother
my body has no flesh,there is no milk in my breast nor water in eyes
I could not remove the hunger of my son
eating grass and hey ,I could not feed you
I could not save your life from hunger
I birth you to die,really i can't be a mother
O God never send any one on this earth
where there is no water ,no milk and no grain to eat
how i pray for him there is nothing ..."

"माँ तू सारे जग की है "





>------ "माँ तू सारे जग की है "-----<
जीवन का आधार है ,दुनिया का श्रेष्ठ उपहार है ,
खुदा खुद भी रोया था जिसके लिए,हर जीव की जीवन धार है 
,नहीं है जिसका कोई विकल्प रंग नहीं ,रूप नहीं बस प्यार है,
जात -पात ,रंग-रूप नहीं ,अपना -पराये का नहीं कभी भेद
इंसान तो क्या ,पशु -पक्षी भी करते जिसका स्तवन
वह औरनहीं कोइ बस तू ही है ,तू ही है ऐ माँ .. ओ माँ ,सबकी प्यारी माँ
(सत्य ....शर्मा .)
 

" बचपन "





<<<<<<< " बचपन " >>>>>>>>
"बचपन की तलाश है
कहीं खो गया है बचपन गलियों में रो रहा है बचपन
होटलों में ढाबों में धो रहा है बरतन काँच की चूड़ियों में पिरो रहा है शबनम !
बीड़ियों में तंबाखू समो रहा है बचपन गोदियों में बचपन खिला रहा है बचपन
योजनाएँ सारी ध्वस्त है
कहीं भी खिलखिलाता नज़र नहीं आ रहा है बचपन "!!
<<<<<<< "Chidhood ">>>>>>>>>
"searching of chidhood
somewhere has missed the childhood,in the street it is crying
In hotels and in resturents it is washing pots,in factories it is working!
in danger places it is working,it is making play infents in its lap
all the plans are faild
nowhere is seen the childhood is laughing"!! (Kavita gour)
 

"बांटों अन्न - बचाओ जीवन "

<<<<<<<<<< "बांटों अन्न - बचाओ जीवन ">>>>>>>>>>
"बड़ी दावतें कहीं ,कहीं शराबों के छलकते जाम हैं 
कंही शबाब पर उड़ते नोटों के दर्शन आज आम हैं 
दुसरी तरफ भूख से बिलखते लोग ,रोटी के टुकड़े के लिए तड़पते
क्यों इतना फरक तेरी दुनिया में ऊपर वाले !
मयस्सर भी नहीं एक कौर जिनके जीवन में
क्या सुनाएँ उन्हें इस देश की गौरव गाथा ,
कया उठाएंगे ये गर्व से अपना माथा
शर्म उन्हें नहीं हमें आनी चाहिए
खुद को इन्सान कहलाने से पहले इनको अपना समझना चहिये
कुछ ओउर नहीं एक ग्रास ही सही नित अपने भोजन से देना चहिये !!"
(सत्य .... शर्मा )
 

< "भाग्य - प्रारब्ध - पुरुषार्थ ">

><><><><><!! "भाग्य - प्रारब्ध - पुरुषार्थ "><><><><><
हमेशा से एक बहस चली आयी है ,...भाग्यवादी मानते हैं की होता वही है जो मनुष्य के भाग्य में अंकित है अर्थात पूर्व निर्धारित है ,उनका विश्वास है के होता वही है जो इश्वर द्वारा मनुष्य के भाग्य में लिख दिया गया है !
प्रारब्ध वादियों का मानना है की मनुष्य जो भी भला ,बुरा करता है वही उसे जनम जन्मान्तर में मिलता है यह ईश्वरीय वयवस्था है !!
पुरषार्थ में विश्वास करने वाले उद्योगी जन सारा बल पुरषार्थ पर देते हैं . वे श्रम और उद्यम पर ही सारा बल लगातें हैं !!!
आपके सुस्पष्ट विचारों को आमंत्रण है ;- सुस्वागतम 

ईश -अभिलाषा

<<<<<<<<'God - wish '>>>>>>>>>>>>
"God wishes that all living things be full of bliss.
Wheather young or old , weak or strong , 
Living or departed or yet unborn " !!
<<<<<<<< ' ईश -अभिलाषा '>>>>>>>>>>>
"ईश्वरकी अभिलाषा यही है की प्रत्येक जीवनधारी आनंद से परिपूर्ण हो
चाहे वह युवा हो या वृद्ध , कमजोर हो या फिर शक्तिशाली ,
शाश्वत ही या नश्वर अथवा चाहे अजन्मा ही क्यों ना हो " !!
(Satya...sharma )