Sunday, March 18, 2012

"बांटों अन्न - बचाओ जीवन "

<<<<<<<<<< "बांटों अन्न - बचाओ जीवन ">>>>>>>>>>
"बड़ी दावतें कहीं ,कहीं शराबों के छलकते जाम हैं 
कंही शबाब पर उड़ते नोटों के दर्शन आज आम हैं 
दुसरी तरफ भूख से बिलखते लोग ,रोटी के टुकड़े के लिए तड़पते
क्यों इतना फरक तेरी दुनिया में ऊपर वाले !
मयस्सर भी नहीं एक कौर जिनके जीवन में
क्या सुनाएँ उन्हें इस देश की गौरव गाथा ,
कया उठाएंगे ये गर्व से अपना माथा
शर्म उन्हें नहीं हमें आनी चाहिए
खुद को इन्सान कहलाने से पहले इनको अपना समझना चहिये
कुछ ओउर नहीं एक ग्रास ही सही नित अपने भोजन से देना चहिये !!"
(सत्य .... शर्मा )
 

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