Sunday, March 25, 2012

अत्यंत प्राचीन सिधु - सभ्यता में मातृ पूजन

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वासंतिक नवरात्र  विक्रमी संवत २०६९ " मातृ- पूजन " के तीसरे दिवस को चंद्रघंटा के रूप में पूजा गया .
हमारे देश में ही नहीं अपितु विश्व के अनेक भागों में लोग माँ की पूजा अर्चना करतें हैं .मातृ  पूजा की परम्परा प्राम्भिक काल से मिलती है .!
नारी की महत्ता ,शक्ति .दया ,करुणा,एवं सहनशीलता के प्रति मानव का उसके प्रति कृतज्ञता ,समर्पण,और समर्पण की स्वीकारोक्ती का प्रतीक ही है !
ईतिहास में सर्वाधिक प्राचीन सभ्यताओं में से एक 'सिन्धु सभ्यता 'के प्राप्त अवशेषों में भी इस बात की पुष्टी होती  है ! उत्खनन से प्राप्त अवशेषों में नारी के अनेक रूपों में प्रतिमाएं इसकी साक्षी हैं ! 
नारी की  एक प्रकार की प्रतिमा में उसके गर्भ से वृक्ष उत्पत्ति का द्रश्य उसके जीव जगत उत्पत्ती को इंगित करता है !
नारी की अन्य प्रतिमा में शिशु को स्तनपान कराते का दृश्य उसके जीव-पालन को दार्शाता है !
नारी की अन्य एक प्रतिमा के सर पर पंख फैलाये एक पक्षी का दृश्य उसके संहारक रूप को दर्शाता है !
ये तीनो स्वरुप "आद्या शक्ति महासरस्वती ,महालक्ष्मी एवं महाकाली" के ही रूपांतर हैं ! ईतिहास कारों के अनुसार ये प्रतिमाएं  उनके धार्मिक जगत का चित्रण कराती हैं.!

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