' नश्तर '
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"मदमस्त सपनो के ये कण आँखों में चुभते क्यों हैं बनकर नश्तर ये प्रेमाश्रु तडफाते क्यों हैंकिया क्यों रक्तरंजित इन नयनों की निर्मलता को !जहां ना था रण,न विरोध ,न कोई ,दुराव था तो बस अपनत्व ,प्यार ,और चाहत कि देखूं तुमको " !!(सत्य ....शर्मा )
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