>>>>>"देखो -सोचो -और बांटों ,मत करो बर्बाद अन्न "<<<<
"पल -पल ,तिल -तिल ख़त्म होता सा ,केवल अस्थि -पिंजर का यह बदन
फटी नुची जिन्दगी की ज़िंदा लाश ही तो हूँ मैं, क्यूँ मुझे भेजा या रब इस जहान में
जहाँ मयस्सर नहीं एक दाना भी उदराग्नि के लिए ,और कहीं अनाज की बर्बादी है
फिर किस इन्तजार में चल रही हैं ये साँसें ,क्या अभी बाकी है कोई गीध मुझे नौचने को !!"
(सत्य....शर्मा)
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