Saturday, April 7, 2012

ख्वाबों को ख्वाबों ने रोका

           " ख्वाबों को ख्वाबों ने ही रोका "
"अपने  सपनों को मेने सपने में ही झिलमिलाते देखा 
प्रेम के आने से पहिले ही प्रेम का ख्वाब देखा !
तुम्हे गढ़ा गया जिन जगहों पे मन के गुलाबों से 
आज उन दरों- दीवारों, फूल -बहारों को वीरान देखा !
थक गए ,टूट गए , कम पड़  गए अरमान  दिल के 
जब तुम्हारी नज़रों में किसी और का ख्वाब देखा  !
मन है की मानता ही नहीं ,कहता है नजरों का धोखा है 
है कोई मजबूरी उनकी जो ख्वाबों को ख्वाबों ने ही रोका है  "!!
(सत्य ..शर्मा )

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