Thursday, November 21, 2013

चन्द्रमा - The Moon

                                     <<< " विज्ञान और हमारा चन्द्रमा ">>>
                   चन्द्रमा , हमारी कल्पनाओं में सर्वाधिक सुन्दर , शीतल ,सुखद और प्रिय स्वरुप में बसा हुआ है।  बाल्यावस्था में ही चन्द्रमा सेहमारा  नाता  जोड़ दिया जाता रहा  है और वो भी सबसे नजदीकी प्यारा रिश्ता -मामा का।बाल कृष्ण का मैं " तो चन्द्र खिलौना लेहों "इसी कि अभिव्यक्ति कवि सूरदास जी ने बल कृष्ण के मुख से करायी  है।  युवावस्था में उसमे प्रियतम को उसकी प्रिया का मुख नजर प्रतीत होने लगता है ,और उसको इंगित कर प्रेमी प्रेमिका अपना प्यार, अपना विछोह, अपना दर्द बांटते रहे हैं।  भारतीय साहित्य में चंद्रमा का जितना सजीव वर्णन हमें प्राप्त होता है उतना किसी और साहित्य में कम ही दृष्टिगोचर होता है।चन्द्रमा सौंदर्य का प्रतिरूप माना  जाता रहा है।
             किन्तु तर्क शास्त्रियों द्वारा तर्क दिए जा रहें हैं कि अब तो वैज्ञानिक तरीकों के द्वारा हमने चंद्रमा को निकट से जाकर देख लिया है जिससे यह स्पष्ट हो चूका है कि चन्द्रमा में किसी प्रकार का सौंदर्य विद्यमान नहीं है. इसलिए अब चन्द्रमा कि उपमा सौंदर्य के लिए उपयुक्त नहीं है और जहाँ जंहा भी इसका वर्णन है उसे भी हटा देना चाहिए।
              भले ही तात्विक दृष्टि से चन्द्रमा सुन्दर न हो परन्तु आज भी हम जब आकाश में स्थित पूर्ण  चन्द्र को निहारते हैं  तो उसमे आज भी हमें वही  अनुभूति होती है , आज भी उसका सौंदर्य वैसा ही प्रतीत होता है।  बालक आज भी उसे देख कर उसी प्रकार हर्षित होते हैं ,प्रेयसी आज भी उसको अपना दर्द बांटती है और प्रेमी भी अपनी प्रिया कि उपमा उससे ही देना अच्छा मानता है। उससे आज भी हमारा वही अपना प्यारा रिश्ता बना हुआ है।
        आयुर्वेद साहित्य में चन्द्र किरणो के माध्यम से पित्त जन्य , काम ज्वर आदि रोगों  को शांत करने का वर्णन प्राप्त होता है।  शरद चन्द्र पूर्णिमा कि रात्री में विशेष तरीके से बनी खीर को समस्त रात्री चन्द्र किरणो से आच्छादित कर सेवन करने से श्वास रोग को नाश करने का भी वर्णन आयुर्वेद ग्रंथों में प्राप्त होता है।
भारतीय महिलांओं द्वारा अपने पति और पुत्र कि दीर्घायु और स्वस्थ जीवन के लिए व्रत रखकर उपासना कि जाती रही है।
विज्ञानं के कारण चन्द्रमा कि सुंदरता कम हो नहीं हो  गयी  है। चन्द्रमा में आज भी उतनी ही शीतलता उपस्थित है जितनी कि पूर्व में थी। ज्योतिष शास्त्र में उसको आज भी वाही स्थान प्राप्त है और उसकी कमी को पूर्ण करने के लिए सम्पूर्ण भारत ही नहीं अपितु अनेको देशों के ज्योतिषज्ञ उपासना आदि अनेकों उपाय करते हैं। इसका अभिप्राय है कि विज्ञानं ही सब कुछ नहीं है।
                                                                               

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