Sunday, November 17, 2013

सूर्य

                       भारतीय सनातन संस्कृति की में पञ्च देव का बहुत ही महत्व रहा है। इन पञ्च देवों में सूर्य का विशेष  महत्व  है ,क्यों कि सूर्य ही एक मात्र ऐसे देव हैं जिनका हम प्रत्यक्ष दर्शन कर उनकी कृपा और दया से पुष्पित और पल्लवित हो रहें हैं।
                      सूर्य वास्तव में सबसे अधिक दयालु देव हैं। वे किसी से पक्षपात नहीं करते , सभी उनकी कृपा के अधिकारी हैं , गरीब से गरीब और अमीर से अमीर कोई भी उनकी कृपा प्राप्त कर सकता है, यदि हम कहें कि गरीबों के लिए वे अत्यधिक सुलभ हैं तो अतिश्योक्ति न होगा।  संसार के समस्त प्राणी चाहे वे अच्छे हों या बुरे सभी उनके प्रकाश के अभिलाषी रहते हैं ऐसा कोई न होगा जो उनकी किरणो का लाभ नहीं लेना चाहता होगा। 
                     सूर्य देव जहाँ शीत (ठण्ड) का हरण कर उष्णता प्रदान करते हैं वहीँ अंधकार को दूर कर प्रकाश के द्वारा  जीवन को गति देते हैं।  इसके अतिरिक्त सूर्य कि किरणें  हमारे जीवन को दुखमय बनाने वाले विषाणुओं को भी अपने प्रकाश एवं उष्णता से नष्ट करती  हैं।  सूर्य कि किरणों में अनेक रोगों को नाश करने की शक्ति है।  वहीँ आस्तिक जन उनकी उपासना कर अपने पापों और दुखों से छुटकारा पातें हैं। सूर्य कि प्रातः कालीन रश्मियों का सेवन शरीर  के लिए अत्यंत  उपयोगी है। अतः हमें नित्य प्रातः उदित होते सूर्य कि किरणों से लाभ लेना चाहिए। ये शरीर में आये रोगों यथा विटामिन डी कि कमी , अस्थियों ,नेत्र  एवं त्वचा के रोगों को दूर करने में सहायक होंगी और हमारे जीवन को दीर्घता प्रदान करेंगी
 
                    यूँ तो सूर्य को प्राचीन रोम , यूनान मिश्र आदि अनेक देशों में विशेष स्थान मिला है,उनको देवता माना है।  प्लिनी के अनुसार रोम में ६०० वर्षों तक रोमवासी सुर्यरश्मियों से ही चिकत्सा करते थे. पुरातत्व कि खोजों ने स्पष्ट किया है कि यूनान में लोग अपने भवनों में एक लम्बी गैलरी बनवाया करते थे जिसमे वे सूर्य रश्मियों का सेवन करते थे। प्राकृतिक चिकित्सा के जनक हिपोक्रेट्स (ईसा से ४०० वर्ष पूर्व) अपने रोगियों को सूर्य चिकत्सा द्वारा ठीक किया करते थे।जापान में सूर्य के अनेक मंदिर हैं।  दक्षिण अमेरिका में भी एक विशाल सूर्य मंदिर स्थित है।
                       किन्तु भारत में प्राचीन काल से ही सूर्योपासना को विशिष्ट स्थान प्राप्त रहा है, सूर्य को सारे संसार कि आँख कह कर सम्बोधित किया गया है। प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद में "सूर्य आत्मा जगतस्तुस्थुषच"।।अर्थात सारे जगत कि आत्मा कहा है। प्राचीन भारत के वैज्ञानिक ऋषि मुनियों ने सूर्य चिकत्सा विज्ञानं में अत्यधिक प्रवीणता प्राप्त कि थी। महर्षि विश्वामित्र का नाम इस विज्ञानं में अग्रणी श्रेणी में आता है ,उन्होंने गायत्री उपासना द्वारा सूर्य विज्ञानं में विशेषज्ञता प्राप्त कि थी। आज भी हिन्दू अपनी त्रिकाल संध्या में सूर्योपासना के माध्यम से मानसिक , शारीरिक एवं आत्मिक ज्ञान कि वृद्धि करतें हैं और इसके द्वारा अपने को स्वस्थ रख बुद्धि प्रखर करतें हैं।
प्रसिद्ध आयुर्वेदिक चिकित्सा ग्रन्थ अष्टांग संग्रह में वर्णित है : - 
                                              "नमः सूर्याय शान्ताय सर्वरोग विनाशिने। 
                                                आयुरारोग्यमैश्वर्यदेहिदेव नमोस्तुते"।।
                      अर्थात समस्त रोगों के नाशक शांति ,आयु , आरोग्य और ऐश्वर्य के दाता सूर्य देव आपको नमस्कार हो।
                        इस वंदना से ज्ञात होता है कि सूर्य हमारे कितने हितैषी और उपकारक देव हैं। वेदो में सूर्य को मित्र भी कहा गया है। यजुर्वेद में सूर्य को "चक्षोः सूर्यारेजायत "अर्थात सूर्य भगवान का नेत्र है , वास्तव में सूर्य भगवान  का ही नहीं अपितु हमारे भी नेत्र हैं क्यूंकि उसके प्रकाश से ही हम समस्त सृष्टि को देख सकतें हैं सूर्य के प्रकाश के अभाव  में हम नेत्रहीन कि भांति ही हैं।
                       सूर्य रश्मियाँ जड़ एवं चेतन सभी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण, जीवनदायनी के रूप में मान्य हैं। जल ,वायु कि तरह ही सूर्य का प्रकाश हम  सभी के लिए सर्वाधिक आवश्यक तत्वों में से एक है , इसके बिना सुव्यवस्थित जीवन कि कल्पना करना बेमानी ही है।
        स्वास्थ्यप्रद :-       प्रातःकाल उदीयमान  सूर्य कि कोमल किरणें जब हमारे शरीर को स्पर्श करती हैं तो हमारे शरीर में एक नवीन ऊर्जा का संचार उत्पन्न होता है और हमारा मस्तिष्क एक विशिष्ट चुंबकीय शक्ति प्राप्त करता है जो मनुष्य को बुद्धिमान बनाती है ,शरीर में रक्त प्रवाह कि गति उत्तम होती है , त्वचा के माध्यम से विटामिन डी कि आपूर्ति होती है जिसके अभाव  में हमारे शारीर में अनेकों रोगों कि उत्पत्ति हो सकती है।
                  वैदिक साहित्य के अनुसार सूर्य उदय से अस्त होने तक अपनी किरणो के माध्यम से अंधकार को नाश कर समस्त दृश्य एवं अदृश्य कृमियों को नष्ट करता है।वेदों में सूर्य कि उपासना सम्बन्धी अनेकों ऋचाएं उपलब्ध हैं जो इस बात को स्पष्ट रूप से घोषित करती हैं कि भारतवासी आदि काल से है सूर्य कि उपयोगिता से पूर्णतः परिचित ही नहीं थे बल्कि उसका सदुपयोग कर सुखमय जीवन व्यतीत करते थे।  सूर्य ह्रदय रोग ,पाण्डु  ,कामला ,हलीमक  आदि अनेक रोगों को नष्ट करता है , सूर्य से प्रार्थना कि गई है कि वह सिरदर्द , खांसी और जोड़ों के दर्द दो दूर करे। द्वापर में श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को कुष्ठ रोग होने पर सूर्य चिकित्सा के माध्यम से ही मुक्ति प्राप्त हुई थी।
                  हमारे पूर्वज सूर्योपासना के माध्यम से बुद्धिमान बने ,त्रिकाल संध्योपासना में गायत्री मन्त्र द्वारा सूर्य कि ही उपासना कि जाती है सूर्य केवल प्रकाश और ऊष्मा ही नहीं देता अपितु बुद्धि  और दीर्घायु भी प्रदान करते  है :-
                        " सवितानः  सुवतु सर्वातितं सवितानो रास्तांदीर्घमायुः"। 

                   वेदों में सूर्य कि उपासना सम्बन्धी अनेकों ऋचाएं उपलब्ध हैं जो इस बात को स्पष्ट रूप से घोषित करती हैं कि भारतवासी आदि काल से है सूर्य कि उपयोगिता से पूर्णतः परिचित ही नहीं थे बल्कि उसका सदुपयोग कर स्वस्थ एवं  सुखमय जीवन व्यतीत करते थे।
                       
                                                

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