Saturday, November 16, 2013

सदाचार और शिष्टाचार

                     
                         शिष्टाचार किसी भी समाज कि जीवन शैली और व्यवहार का आईना होता है।  किसी भी व्यक्ति के द्वारा किये गए शिष्टाचार से हम उसके व्यक्तिगत,सामाजिक एवं आंतरिक आचार विचार से रुबरु हो सकते हैं। प्रत्येक समाज के शिष्टाचार में वहाँ कि आकांक्षा,आदर्श और मर्यादायें समाहित रहती हैं।                             हिन्दू समाज एक ऐसा समाज है जो बिना धर्म और दर्शन के कुछ नहीं करता यहाँ प्रत्येक आचार धर्म पर आधारित और दार्शनिक तथ्य रखता है यह कल्पना पर आधारित शिष्टाचार नहीं अपितु मजबूत आधार भूमि पर स्थापित है. भारतीय हिन्दू समाज में स्त्री ,पुरुष ,बालक बालिका , बुजर्गों एवं अतिथियों आदि के साथ आपस में सामाजिक व्यवहार  सदा से नैतिक ही रहा है।  हाँ वर्तमान  में पाश्चात्य भोगवादी संस्कृति के जाल ने इस पर भीषण प्रहार किया है और हम इस प्रहार को उपहार समझ कर प्रफुल्लित हो रहे हैं।
                    भारतीय प्राचीन मनीषियों द्वारा प्रतिपादित शिष्टाचार के नियम जहाँ शारीरिक मानसिक एवं सामाजिक बिमारियों से बचाकर रखते हैं वंही मन मस्तिक और हृदय को बल प्रदान करते हैं और ये नियम वैज्ञानिक सिद्धांतों से परिपूर्ण भी हैं। जो संक्षेप में निम्नवत हैं :-

       १ , भारतीय संस्कृति में बच्चों के सुन्दर और प्यारे नाम रखने कि परम्परा रही है और ये नाम प्रेरणाप्रद होते हैं। अतः इस परम्परा को विकृत न करें।
       २. किसी मित्र या रिश्तेदारत के घर जाओ तो उनके बच्चों को अपने प्यार का परिचय दो।
       ३. किसी विशेष अवसर पर उनको आमंत्रित करो तो उनके बच्चों को बुलाना न भूलें।
       ४. बच्चों को प्राकृतिक ,धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों पर ले जाते रहना चाहिए।
       ५. बच्चों को अपने समय के महान पुरुषों ,विद्वानों ,नेताओं से कभी कभी मिलवाना चाहिए।
                                                                                           (शेष फिर~~~~~~~~~ )

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